ताज कविता
हाय! मृत्यु का ऐसा अमर, अपार्थिव पूजन?
जब निषण्ण, निर्जीव पड़ा हो जग का जीवन!
संग-सौध में हो श्रृंगार मरण का शोभन,
नग्न, क्षुधातुर, वास-विहीन रहें जीवित
जन?
मानव! ऐसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति?
आत्मा का अपमान, प्रेत औ’ छाया से रति!!
प्रेम-अर्चना यही, करें हम मरण को वरण?
स्थापित कर कंकाल, भरें जीवन का प्रांगण?
शव को दें हम रूप, रंग, आदर मानव का
मानव को हम कुत्सित चित्र बना दें शव का?
गत-युग के बहु धर्म-रूढ़ि के ताज मनोहर
मानव के मोहांध हृदय में किए हुए घर!
भूल गये हम जीवन का संदेश अनश्वर,
मृतकों के हैं मृतक, जीवतों का है ईश्वर!
ताज -सुमित्रानंदन
पंत
कवि सुमित्रानंदन
पंत
जन्म 20 मई
1900
जन्म स्थान कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत
मृत्यु 28
दिसंबर,
1977
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर
प्रदेश
मुख्य रचनाएँ वीणा, पल्लव,
चिदंबरा,
युगवाणी,
लोकायतन,
हार,
आत्मकथात्मक
संस्मरण-
साठ
वर्ष,
युगपथ,
स्वर्णकिरण,
कला
और
बूढ़ा
चाँद
आदि
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